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धन धन भोलेनाथ तुम्हारे कौड़ी नहीं खजाने में, |
तीन लोक बस्ती में बसाये आप बसे वीराने में | |
जटा जूट के मुकुट शीश पर गले में मुंडन की माला, |
माथे पर छोटा चन्द्रमा कृपाल में करके व्याला | |
जिसे देखकर भय ब्यापे सो गले बीच लपटे काला, |
और तीसरे नेत्र में तेरे महा प्रलय की है ज्वाला | |
पीने को हर भंग रंग है आक धतुरा खाने का, |
तीन लोक बस्ती में बसाये आप बसे वीराने में | |
नाम तुम्हारा है अनेक पर सबसे उत्तत है गंगा, |
वाही ते शोभा पाई है विरासत सिर पर गंगा | |
भूत बोतल संग में सोहे यह लश्कर है अति चंगा, |
तीन लोक के दाता बनकर आप बने क्यों भिखमंगा | |
अलख मुझे बतलाओ क्या मिलता है अलख जगाने में, |
ये तो सगुण स्वरूप है निर्गुन में निर्गुन हो जाये | |
पल में प्रलय करो रचना क्षण में नहीं कुछ पुण्य आपाये, |
चमड़ा शेर का वस्त्र पुराने बूढ़ा बैल सवारी को | |
जिस पर तुम्हारी सेवा करती, धन धन शैल कुमारी को, |
क्या जान क्या देखा इसने नाथ तेरी सरदारी को | |
सुन तुम्हारी ब्याह की लीला भिखमंगे के गाने में, |
तीन लोक बस्ती में बसाये आप बसे वीराने में | |
किसी का सुमिरन ध्यान नहीं तुम अपने ही करते हो जाप, |
अपने बीच में आप समाये आप ही आप रहे हो व्याप | |
हुआ मेरा मन मग्न ओ बिगड़ी ऐसे नाथ बचाने में, |
तीन लोक बस्ती में बसाये आप बसे वीराने में | |
कुबेर को धन दिया आपने, दिया इन्द्र को इन्द्रासन, |
अपने तन पर ख़ाक रमाये पहने नागों का भूषण | |
मुक्ति के दाता होकर मुक्ति तुम्हारे गाहे चरण, |
"भक्त ये नाथ तुम्हारे हित से नित से करो भजन | |
तीन लोक बस्ती में बसाये आप बसे वीराने में | |
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